28 सितम्बर 2005
रचनाकार को अपना अमूल्य सहयोग दें...
रचनाकार में महज कुछ वर्षों के दौरान हजारों हजार रचनाएं प्रकाशित हुई हैं जिनमें कई एक तो पूरे कहानी संग्रह, कविता संग्रह, यात्रा संस्मरण, संपूर्ण उपन्यास इत्यादि भी शामिल हैं. दर्जनों ई-बुक भी प्रकाशित किए गए हैं, जिन्हें मुफ़्त में डाउनलोड कर पढ़ा जा सकता है. रचनाकार को प्रतिवर्ष लाखों पाठक पढ़ते हैं. रचनाकार के इस बढ़ते कदम में आप भी अपना अमूल्य सहयोग प्रदान कर सकते हैं.
कैसे?
अपनी स्वयं की, मित्रों की रचनाएँ कम्प्यूटर पर किसी भी फ़ॉन्ट में टाइप कर अथवा टाइप करवाकर रचनाकार को ईमेल या सीडी के जरिए भिजवाएँ.
पुरानी, रॉयल्टी फ्री हिन्दी साहित्य की रचनाएँ जिन्हें आपको लगता है कि इंटरनेट पर होनी चाहिएँ उन्हें कम्प्यूटर पर टाइप कर / टाइप करवाकर रचनाकार को भेजें.
औसतन एक ए-4 आकार के पृष्ठ को टाइप करने का खर्च 10 रुपए ($1/4) के करीब आता है. कोई रचना यदि आप इंटरनेट पर देखना चाहते हैं, और उसके लिए इस रूप में सहयोग करना चाहते हैं व राशि दान करना चाहते हैं तो कृपया रचनाकार को rachanakar@gmail.com पर लिखें. यदि आपके पास पेपाल (PAYPAL) का खाता है तो आप raviratlami@yahoo.com खाते पर किसी भी राशि का अनुदान दे सकते हैं. यदि आप चाहेंगे तो आपका नाम अनुदान कर्ता के रूप में इन्ही पृष्ठों में शामिल किया जा सकेगा.
**-**
इंटरनेट पर ‘रचनाकार’ में प्रकाशनार्थ रचनाओं के लिए नियम निम्न हैं-
रचनाओं के लिए अप्रकाशित-अप्रसारित जैसा कोई बंधन नहीं है. बल्कि प्रिंट मीडिया में पूर्व प्रकाशित श्रेष्ठ रचनाओं को रचनाकार पर प्रकाशनार्थ भेजें तो उत्तम होगा. कृपया ध्यान दें - इंटरनेट एक विशाल किताब की तरह है. यहाँ कंटेंट डुप्लीकेशन का कोई विशेष अर्थ नहीं है. अतः इस बात का विशेष ध्यान रखें कि कृपया अपने ब्लॉग या इंटरनेट पर अन्यत्र प्रकाशित रचनाओं को रचनाकार में प्रकाशनार्थ नहीं भेजें.
रचनाएँ ईमेल के ज़रिए भेजें तो हमें सुविधा होगी. रचना भेजने के लिए ईमेल पता है:rachanakar@gmail.com . रचना हिन्दी के किसी भी फ़ॉन्ट या फ़ॉर्मेट में भेज सकते हैं. ईमेल के जरिए रचना भेजना संभव न हो तो डाक के निम्न पते पर भी रचनाएँ सीडी में राइट करवाकर भेजी जा सकती हैं.
डाक का पता- रचनाकार, द्वारा- रविशंकर श्रीवास्तव, एफ़2आर 4/3 , प्रोफ़ेसर कॉलोनी, भोपाल मप्र भारत
रचनाकार का प्रकाशन अवैतनिक, अव्यावसायिक, सर्वजन हिताय किया जा रहा है, अत: किसी भी प्रकार का मानदेय इत्यादि प्रदान करना संभव नहीं होगा.
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(1)
यदि आपका अपना स्वयं का ब्लॉग है, तो उसमें पूर्व प्रकाशित रचनाओं को फिर से प्रकाशनार्थ न भेजें. इंटरनेट एक बड़े खुले किताब की तरह है. जिसमें सर्च कर किसी विशेष पृष्ठ पर आसानी से व तुरंत जाया जा सकता है. एक ही रचना को कई-कई पृष्ठों पर प्रकाशित करने का कोई अर्थ नहीं है. इंटरनेट पर अप्रकाशित (प्रिंट मीडिया में पूर्व प्रकाशित का तो स्वागत है) रचनाओं को ही इंटरनेटीय पत्रिकाओं को प्रकाशनार्थ भेजें. रचना एक ही इंटरनेट पत्रिका को भेजें. एक पत्रिका में प्रकाशित रचना को, अपवादों को छोड़कर, अन्य दूसरी पत्रिका में प्रकाशित न करवाएँ. आमतौर पर रचनाएँ जल्द ही प्रकाशित हो जाती हैं क्योंकि इंटरनेटी पत्रिकाओं में पृष्ठ सीमा इत्यादि का बंधन नहीं होता. आपको ईमेल से त्वरित सूचना भी प्राप्त हो जाती है. रचना के प्रकाशन के उपरांत आप चाहें तो अपने ब्लॉग में संक्षिप्त विवरण देकर उसका लिंक लगा सकते हैं.
(2)
यह अवधारणा गलत है कि जितनी ज्यादा जगह में एक रचना प्रकाशित होगी उतना ज्यादा लोग पढ़ेंगे. 5-10 प्रतिशत शुरूआती हिट्स भले ही ज्यादा मिल जाएं, परंतु अंतत: लंबे समय में खोजबीन कर बारंबार पठन पाठन में वही रचना प्रयोग में आएगी जिसमें स्तरीय, सारगर्भित सामग्री होगी. लोगबाग खुद ही ब्लॉगवाणी पसंद जैसे पुस्त-चिह्न औजारों (भविष्य में ऐसे दर्जनों औजारों के आने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता) का प्रयोग आपकी रचना को लोकप्रिय बनाने में करेंगे. अत: रचना इंटरनेट पर एक ही स्थल में प्रकाशित करें. यदि आपका अपना स्वयं का ब्लॉग या जाल-स्थल है तो आपकी रचना के लिए इंटरनेट पर इससे बेहतर और कोई दूसरा स्थल नहीं. यदि आप अपना स्वयं का डोमेन लेकर रचनाएँ प्रकाशित कर रहे हैं तब भी यह अनुशंसित है कि वर्डप्रेस या ब्लॉगर जैसे सदा सर्वदा के लिए मुफ़्त उपलब्ध प्रकल्पों के जरिए अपनी रचना प्रकाशित करें, व डोमेन पते से रीडायरेक्ट करें. कल को हो सकता है कि आप डोमेन का नवीनीकरण करवाना भूल जाएं, या फिर कोई पचास साल बाद आपके वारिसों को आपका डोमेन फालतू खर्च वाला लगने लगे.
(3)
रचना ईमेल से भेजने के पश्चात् एक सप्ताह का समय दें. आमतौर पर इतने समय में इंटरनेटी पत्रिकाओं से प्रकाशन बाबत सूचना रचनाकारों तक पहुँच जाती है. उसके पश्चात् ही रचनाएं दोबारा भेजें. यदि संभव हो तो रचना दोबारा भेजने से पहले पूछ-ताछ कर लें, ताकि बार बार बड़ी फाइलों को अपलोड-डाउनलोड करने से बचा जा सके. आमतौर पर अच्छी प्रकाशन योग्य रचना को त्वरित ही प्रकाशित कर दिया जाता है. यदि रचना स्मरण दिलाने के बाद भी प्रकाशित नहीं होती हो तो कृपया अन्यथा न लें, क्योंकि बहुधा फरमा में नहीं बैठ पाने के कारण रचना प्रकाशित नहीं हो पाती. साथ ही हर रचना के बारे में प्रत्युत्तर की आशा न रखें. आधुनिक इंटरनेटी युग में सबसे कीमती वस्तु है समय. समयाभाव और साधनाभाव में बहुधा प्रत्येक को प्रत्युत्तर दे पाना संभव नहीं होता. अतः कृपया कृपा बनाए रखें. धैर्य भी.
(4)
इंटरनेटी पत्रिका का स्वरूप, उसका तयशुदा फरमा, सामग्री इत्यादि को एक बार देख लेने के उपरांत ही अपनी रचनाएँ भेजें. इंटरनेट का प्रचार प्रसार चहुँओर फैलने से सामग्री की स्तरीयता में तेजी से कमी की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. साथ ही, आमतौर पर इंटरनेट के साहित्यिक प्रकल्प रचनाकार जैसे स्थल राजनीतिक आलेख व टिप्पणियाँ प्रकाशित नहीं करते हैं, अत: इन्हें प्रकाशनार्थ न भेजें. इस तरह की तमाम सामग्री आप अपने ब्लॉग में बेधड़क प्रकाशित कर सकते हैं. यदि आपका ब्लॉग नहीं है तो, यकीन मानिए, ब्लॉग बनाना और उसमें लिखना बेहद आसान है. बाजू पट्टी में दी गई कड़ियों से और जानकारी प्राप्त करें.
(5)
इंटरनेटी पत्रिकाओं के संपादकों से आग्रह है कि रचना के प्रकाशन से पूर्व वे रचना की कोई शुरूआती पंक्ति गूगल सर्च में डालकर देख लें कि वह कहीं पूर्व प्रकाशित तो नहीं है. यदि रचना पूर्व प्रकाशित है तो रचयिता को सूचित करें, और अपवाद स्वरूप कुछ विशिष्ट रचनाओं को छोड़ कर आमतौर पर इंटरनेट पर पूर्व प्रकाशित रचना को फिर से प्रकाशित न करें. पहले जब यूनिकोड प्रचलित नहीं था, तब एक ही रचना के शुषा, कृतिदेव, अर्जुन इत्यादि फोंटों में अलग अगल स्थलों पर प्रकाशित होने की बात तो ठीक थी, परंतु अब इसकी न तो जरूरत है, न ही प्रयोजन.
(6)
यदि आप पुराने फ़ॉन्टों में लिख रहे हैं, तो इंटरनेट पर बहुत ही खूबसूरत ऑनलाइन फ़ॉन्ट कन्वर्टर यहाँ पर उपलब्ध है. उसमें अपनी रचना यूनिकोड में परिवर्तित करें, फिर गूगल डॉक में (यदि खाता नहीं है तो एक खाता खोल लें) हिन्दी वर्तनी की जांच (हालांकि यह उतना उन्नत नहीं है, मगर काम लायक तो है ही) कर लें. इस तरह से वर्तनी की जाँच कर ली गई, यूनिकोड में परिवर्तित रचना को प्रकाशनार्थ भेजें तो निश्चित तौर पर ऑनलाइन पत्रिकाओं के संपादक आपके अनुग्रही रहेंगे.
शुभकामनाओं के साथ,
आपका,
रविशंकर श्रीवास्तव
कैसे?
अपनी स्वयं की, मित्रों की रचनाएँ कम्प्यूटर पर किसी भी फ़ॉन्ट में टाइप कर अथवा टाइप करवाकर रचनाकार को ईमेल या सीडी के जरिए भिजवाएँ.
पुरानी, रॉयल्टी फ्री हिन्दी साहित्य की रचनाएँ जिन्हें आपको लगता है कि इंटरनेट पर होनी चाहिएँ उन्हें कम्प्यूटर पर टाइप कर / टाइप करवाकर रचनाकार को भेजें.
औसतन एक ए-4 आकार के पृष्ठ को टाइप करने का खर्च 10 रुपए ($1/4) के करीब आता है. कोई रचना यदि आप इंटरनेट पर देखना चाहते हैं, और उसके लिए इस रूप में सहयोग करना चाहते हैं व राशि दान करना चाहते हैं तो कृपया रचनाकार को rachanakar@gmail.com पर लिखें. यदि आपके पास पेपाल (PAYPAL) का खाता है तो आप raviratlami@yahoo.com खाते पर किसी भी राशि का अनुदान दे सकते हैं. यदि आप चाहेंगे तो आपका नाम अनुदान कर्ता के रूप में इन्ही पृष्ठों में शामिल किया जा सकेगा.
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इंटरनेट पर ‘रचनाकार’ में प्रकाशनार्थ रचनाओं के लिए नियम निम्न हैं-
रचनाओं के लिए अप्रकाशित-अप्रसारित जैसा कोई बंधन नहीं है. बल्कि प्रिंट मीडिया में पूर्व प्रकाशित श्रेष्ठ रचनाओं को रचनाकार पर प्रकाशनार्थ भेजें तो उत्तम होगा. कृपया ध्यान दें - इंटरनेट एक विशाल किताब की तरह है. यहाँ कंटेंट डुप्लीकेशन का कोई विशेष अर्थ नहीं है. अतः इस बात का विशेष ध्यान रखें कि कृपया अपने ब्लॉग या इंटरनेट पर अन्यत्र प्रकाशित रचनाओं को रचनाकार में प्रकाशनार्थ नहीं भेजें.
रचनाएँ ईमेल के ज़रिए भेजें तो हमें सुविधा होगी. रचना भेजने के लिए ईमेल पता है:rachanakar@gmail.com . रचना हिन्दी के किसी भी फ़ॉन्ट या फ़ॉर्मेट में भेज सकते हैं. ईमेल के जरिए रचना भेजना संभव न हो तो डाक के निम्न पते पर भी रचनाएँ सीडी में राइट करवाकर भेजी जा सकती हैं.
डाक का पता- रचनाकार, द्वारा- रविशंकर श्रीवास्तव, एफ़2आर 4/3 , प्रोफ़ेसर कॉलोनी, भोपाल मप्र भारत
रचनाकार का प्रकाशन अवैतनिक, अव्यावसायिक, सर्वजन हिताय किया जा रहा है, अत: किसी भी प्रकार का मानदेय इत्यादि प्रदान करना संभव नहीं होगा.
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अपनी रचना इंटरनेट पर प्रकाशित करते-करवाते समय निम्न बातों का ध्यान रखें –
हिन्द युग्म में एक पोस्ट प्रकाशित हुई है - "किसी अन्य की रचना को अपना कहने का जोखिम ना लें, इंटरनेट आपकी चोरी पकड़ लेगा". इसी तारतम्य में देखा जा रहा है कि इंटरनेट पर लगभग मुफ़्त में (आमतौर पर ब्लॉगों में) छपाई की सुविधा हासिल हो जाने के बाद अचानक हर कोई अपनी रचना हर संभव तरीके से इंटरनेट पर हर कहीं लाने को तत्पर दीखता है. देखने में आया है कि इंटरनेट पर रचनाकार अपनी रचना रचनाकार में प्रकाशित करने भेज रहा है तो साथ साथ साहित्य शिल्पी, हिन्द युग्म, अनुभूति-अभिव्यक्ति, सृजन-गाथा, शब्दकार और ऐसे ही दर्जनों अन्य जाल-प्रकल्पों पर भी अपनी वही रचनाएं प्रकाशनार्थ भेज रहा है. कुछ अति उत्साही किस्म के लोग अपनी ब्लॉग रचनाओं को एक-दो नहीं, बल्कि तीन-तीन, चार-चार जगह पर छाप रहे हैं. परंतु इसका कोई अर्थ, कोई प्रयोजन है? शायद नहीं. दरअसल, ऐसा करके हम इंटरनेट पर और ज्यादा कचरा फैला रहे होते हैं. आप सभी सुधी रचनाकारों से आग्रह है कि इंटरनेट पर रचनाएँ प्रकाशित करते समय निम्न बातों का ध्यान रखें तो उत्तम होगा -(1)
यदि आपका अपना स्वयं का ब्लॉग है, तो उसमें पूर्व प्रकाशित रचनाओं को फिर से प्रकाशनार्थ न भेजें. इंटरनेट एक बड़े खुले किताब की तरह है. जिसमें सर्च कर किसी विशेष पृष्ठ पर आसानी से व तुरंत जाया जा सकता है. एक ही रचना को कई-कई पृष्ठों पर प्रकाशित करने का कोई अर्थ नहीं है. इंटरनेट पर अप्रकाशित (प्रिंट मीडिया में पूर्व प्रकाशित का तो स्वागत है) रचनाओं को ही इंटरनेटीय पत्रिकाओं को प्रकाशनार्थ भेजें. रचना एक ही इंटरनेट पत्रिका को भेजें. एक पत्रिका में प्रकाशित रचना को, अपवादों को छोड़कर, अन्य दूसरी पत्रिका में प्रकाशित न करवाएँ. आमतौर पर रचनाएँ जल्द ही प्रकाशित हो जाती हैं क्योंकि इंटरनेटी पत्रिकाओं में पृष्ठ सीमा इत्यादि का बंधन नहीं होता. आपको ईमेल से त्वरित सूचना भी प्राप्त हो जाती है. रचना के प्रकाशन के उपरांत आप चाहें तो अपने ब्लॉग में संक्षिप्त विवरण देकर उसका लिंक लगा सकते हैं.
(2)
यह अवधारणा गलत है कि जितनी ज्यादा जगह में एक रचना प्रकाशित होगी उतना ज्यादा लोग पढ़ेंगे. 5-10 प्रतिशत शुरूआती हिट्स भले ही ज्यादा मिल जाएं, परंतु अंतत: लंबे समय में खोजबीन कर बारंबार पठन पाठन में वही रचना प्रयोग में आएगी जिसमें स्तरीय, सारगर्भित सामग्री होगी. लोगबाग खुद ही ब्लॉगवाणी पसंद जैसे पुस्त-चिह्न औजारों (भविष्य में ऐसे दर्जनों औजारों के आने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता) का प्रयोग आपकी रचना को लोकप्रिय बनाने में करेंगे. अत: रचना इंटरनेट पर एक ही स्थल में प्रकाशित करें. यदि आपका अपना स्वयं का ब्लॉग या जाल-स्थल है तो आपकी रचना के लिए इंटरनेट पर इससे बेहतर और कोई दूसरा स्थल नहीं. यदि आप अपना स्वयं का डोमेन लेकर रचनाएँ प्रकाशित कर रहे हैं तब भी यह अनुशंसित है कि वर्डप्रेस या ब्लॉगर जैसे सदा सर्वदा के लिए मुफ़्त उपलब्ध प्रकल्पों के जरिए अपनी रचना प्रकाशित करें, व डोमेन पते से रीडायरेक्ट करें. कल को हो सकता है कि आप डोमेन का नवीनीकरण करवाना भूल जाएं, या फिर कोई पचास साल बाद आपके वारिसों को आपका डोमेन फालतू खर्च वाला लगने लगे.
(3)
रचना ईमेल से भेजने के पश्चात् एक सप्ताह का समय दें. आमतौर पर इतने समय में इंटरनेटी पत्रिकाओं से प्रकाशन बाबत सूचना रचनाकारों तक पहुँच जाती है. उसके पश्चात् ही रचनाएं दोबारा भेजें. यदि संभव हो तो रचना दोबारा भेजने से पहले पूछ-ताछ कर लें, ताकि बार बार बड़ी फाइलों को अपलोड-डाउनलोड करने से बचा जा सके. आमतौर पर अच्छी प्रकाशन योग्य रचना को त्वरित ही प्रकाशित कर दिया जाता है. यदि रचना स्मरण दिलाने के बाद भी प्रकाशित नहीं होती हो तो कृपया अन्यथा न लें, क्योंकि बहुधा फरमा में नहीं बैठ पाने के कारण रचना प्रकाशित नहीं हो पाती. साथ ही हर रचना के बारे में प्रत्युत्तर की आशा न रखें. आधुनिक इंटरनेटी युग में सबसे कीमती वस्तु है समय. समयाभाव और साधनाभाव में बहुधा प्रत्येक को प्रत्युत्तर दे पाना संभव नहीं होता. अतः कृपया कृपा बनाए रखें. धैर्य भी.
(4)
इंटरनेटी पत्रिका का स्वरूप, उसका तयशुदा फरमा, सामग्री इत्यादि को एक बार देख लेने के उपरांत ही अपनी रचनाएँ भेजें. इंटरनेट का प्रचार प्रसार चहुँओर फैलने से सामग्री की स्तरीयता में तेजी से कमी की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. साथ ही, आमतौर पर इंटरनेट के साहित्यिक प्रकल्प रचनाकार जैसे स्थल राजनीतिक आलेख व टिप्पणियाँ प्रकाशित नहीं करते हैं, अत: इन्हें प्रकाशनार्थ न भेजें. इस तरह की तमाम सामग्री आप अपने ब्लॉग में बेधड़क प्रकाशित कर सकते हैं. यदि आपका ब्लॉग नहीं है तो, यकीन मानिए, ब्लॉग बनाना और उसमें लिखना बेहद आसान है. बाजू पट्टी में दी गई कड़ियों से और जानकारी प्राप्त करें.
(5)
इंटरनेटी पत्रिकाओं के संपादकों से आग्रह है कि रचना के प्रकाशन से पूर्व वे रचना की कोई शुरूआती पंक्ति गूगल सर्च में डालकर देख लें कि वह कहीं पूर्व प्रकाशित तो नहीं है. यदि रचना पूर्व प्रकाशित है तो रचयिता को सूचित करें, और अपवाद स्वरूप कुछ विशिष्ट रचनाओं को छोड़ कर आमतौर पर इंटरनेट पर पूर्व प्रकाशित रचना को फिर से प्रकाशित न करें. पहले जब यूनिकोड प्रचलित नहीं था, तब एक ही रचना के शुषा, कृतिदेव, अर्जुन इत्यादि फोंटों में अलग अगल स्थलों पर प्रकाशित होने की बात तो ठीक थी, परंतु अब इसकी न तो जरूरत है, न ही प्रयोजन.
(6)
यदि आप पुराने फ़ॉन्टों में लिख रहे हैं, तो इंटरनेट पर बहुत ही खूबसूरत ऑनलाइन फ़ॉन्ट कन्वर्टर यहाँ पर उपलब्ध है. उसमें अपनी रचना यूनिकोड में परिवर्तित करें, फिर गूगल डॉक में (यदि खाता नहीं है तो एक खाता खोल लें) हिन्दी वर्तनी की जांच (हालांकि यह उतना उन्नत नहीं है, मगर काम लायक तो है ही) कर लें. इस तरह से वर्तनी की जाँच कर ली गई, यूनिकोड में परिवर्तित रचना को प्रकाशनार्थ भेजें तो निश्चित तौर पर ऑनलाइन पत्रिकाओं के संपादक आपके अनुग्रही रहेंगे.
शुभकामनाओं के साथ,
आपका,
रविशंकर श्रीवास्तव
आगे पढ़ें: रचनाकार: रचनाकार को अपना अमूल्य सहयोग दें... http://www.rachanakar.org/2005/09/blog-post_28.html#ixzz1jSpOqLZA
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