बुधवार, १३ जुलाई २०११
खाना कौन बनाये? महिलाओ की राय चाहूँगा
एक गंभीर मामले में मैं सभी महिलाओं की राय लेना चाहूँगा, मामला शुरू हुआ है नीतू बांगा की पोस्ट लड़कियां ही खाना बनाना क्यों सीखें? से
उन्होंने अपनी पोस्ट पर सवाल एकदम सही उठाया है और मैं भी इससे सहमत हूँ कि लड़कों को भी खाना बनाना सीखना चाहिए, पर कमेन्ट उस सवाल को एक नया रूख दे गए और जो मेरे सामने आया वह अचंभित करने वाला है-
उनको मैंने कमेन्ट दिया कि
इस बात पर नीतू जी असहमत हैं, जाहिर है उनका मानना है कि मैं नौकरी भी करूं और घर पर आकर खाना भी बनाऊँ भले ही मेरे पत्नी कमाने में मेरा सहयोग ना करे, या क्या बात हुई?
मैं भी स्त्रियों के सामान अधिकार की वकालत करता हूँ, यह आप मेरे दोनों ब्लोगों पर "नारी" ब्लॉग पर मेरे कमेंटों में देख चुके होंगे, पर अब यहाँ पर बात वेवकूफी तथा जिद की है, जिसकी मैं वकालत नहीं कर सकता-
मैं इन तीन परिस्थितियों में सहमत हूँ-
पर ये कहाँ की बात हुई कि महिला को बराबर का अधिकार देने की बात कह कर महिलाएं घर का काम भी ना करें और कमाएँ भी नहीं?
पिछले कुछ दिनों से शादी के लिए लड़कियां तलाश रहा हूँ और कुछ ऐसे ही वेहद पेचीदा मामले मेरे सामने आये हैं, उनको आपके सामने रखना चाहता हूँ और आप सभी की (खास तौर पर महिलाओं की राय चाहता हूँ)
मामला १- एक लड़की ने कहा कि वो शादी के बाद साड़ी नहीं पहनेगी (कहीं भी नहीं, यानि गांव में भी नहीं, ससुराल में भी नहीं और मेरे साथ रहने पर भी नहीं)
मेरे विचार छोडिये, मैं तो इस मामले में महिलाओं के विचार जानना चाहता हूँ, उनके भी जो शादी-शुदा हैं, उनके भी जिनकी अब बहुएं आ चुकी हैं और उनकी भी जो बहुत जल्द किसी के घर की लक्ष्मी बनाने जा रही हैं|
अपनी राय जरूर रखें - धन्यवाद|
उन्होंने अपनी पोस्ट पर सवाल एकदम सही उठाया है और मैं भी इससे सहमत हूँ कि लड़कों को भी खाना बनाना सीखना चाहिए, पर कमेन्ट उस सवाल को एक नया रूख दे गए और जो मेरे सामने आया वह अचंभित करने वाला है-
उनको मैंने कमेन्ट दिया कि
मुझे लगता है नीतू जी की आपको किसी ने इस बात पर बहुत डांटा है, उसके बाद आपने यह लेख लिखा है :)
वैसे आपकी बातों से मैं सहमत हूँ, लड़कों को खाना बनाना आना चाहिए
पर मुझे खाना बनाना आने पर भी मैं तब तक खाना नही बनाऊंगा जब तक मेरी पत्नी भी कमाना शुरू ना कर दे, यदि वो मुझसे यह चाहे की मैं खाना बनाने मे सहयोग करूँ तो उसको कमाने मे सहयोग करना होगा...
इस बात पर नीतू जी असहमत हैं, जाहिर है उनका मानना है कि मैं नौकरी भी करूं और घर पर आकर खाना भी बनाऊँ भले ही मेरे पत्नी कमाने में मेरा सहयोग ना करे, या क्या बात हुई?
मैं भी स्त्रियों के सामान अधिकार की वकालत करता हूँ, यह आप मेरे दोनों ब्लोगों पर "नारी" ब्लॉग पर मेरे कमेंटों में देख चुके होंगे, पर अब यहाँ पर बात वेवकूफी तथा जिद की है, जिसकी मैं वकालत नहीं कर सकता-
मैं इन तीन परिस्थितियों में सहमत हूँ-
- पति कमाए तथा पत्नी घर चलाने की जिम्मेदारी संभाले
- पत्नी कमाए तथा पति घर चलाने की जिम्मेदारी संभाले
- दोनों कमाएँ तथा दोनों ही घर की जिम्मेदारी भी संभालें
पर ये कहाँ की बात हुई कि महिला को बराबर का अधिकार देने की बात कह कर महिलाएं घर का काम भी ना करें और कमाएँ भी नहीं?
पिछले कुछ दिनों से शादी के लिए लड़कियां तलाश रहा हूँ और कुछ ऐसे ही वेहद पेचीदा मामले मेरे सामने आये हैं, उनको आपके सामने रखना चाहता हूँ और आप सभी की (खास तौर पर महिलाओं की राय चाहता हूँ)
मामला १- एक लड़की ने कहा कि वो शादी के बाद साड़ी नहीं पहनेगी (कहीं भी नहीं, यानि गांव में भी नहीं, ससुराल में भी नहीं और मेरे साथ रहने पर भी नहीं)
मेरे विचार- क्या पहनना है और क्या नहीं वह आपको तय करना है दूसरे को नहीं पर सिर्फ तब तक जब तक मेरे साथ अलग रह रहे हो, कभी-कभी मेरे घर और गांव जाना ही होगा तब साड़ी ही पहननी होगी- भले ही मेरे माता-पिता कुछ और पहनने की इजाजत क्यूँ ना दे दें)मामला २- एक लड़की का पहला सवाल था कि कहाँ रहेंगे? मैंने ज्यादा जानना चाहा तो पता चला कि वो कभी भी मेट्रो सिटी से बाहर जाना पसंद नहीं करेगी, यानि यदि उसी के शब्द कहूँ तो "मैं कभी भी गांव नहीं जाऊँगी चाहे कुछ भी क्यूँ ना हो जाए, और शायद आगरा (मेरा घर) भी नहीं"
मेरे विचार- ऐसे मामलों में शांत रहना ही ठीक है, वक्त सब कुछ सिखा देगा| वैसे भी ऐसी मूर्खता भरी जिद पर क्या कहा जा सकता है?मामला ३- एक लड़की का कहना था कि मैं घर के काम नहीं जानती हूँ और सीखना भी नहीं चाहती, जब मैंने पुछा कि आप जॉब करना चाहतीं हैं तो उसका कहना था कि "जॉब करने के लिए बस, लोकल ट्रेन, ऑटो में धक्के खाने पड़ते हैं जो मुझे पसंद नहीं"
मेरे विचार - ऐसी लड़की से शादी करने से बेहतर है कुंवारे रहो
मेरे विचार छोडिये, मैं तो इस मामले में महिलाओं के विचार जानना चाहता हूँ, उनके भी जो शादी-शुदा हैं, उनके भी जिनकी अब बहुएं आ चुकी हैं और उनकी भी जो बहुत जल्द किसी के घर की लक्ष्मी बनाने जा रही हैं|
अपनी राय जरूर रखें - धन्यवाद|
शनिवार, ९ जुलाई २०११
धन्यवाद साइंस ब्लोगर्स एसोसिएशन
साइंस ब्लोगर्स एसोसिएशन, आज ब्लॉग जगत में किसी परिचय का मोहताज नहीं है, यह ब्लॉग लोगों को विज्ञान की तमाम जानकारियां सरल शब्दों में उपलब्ध करवा रहा है | दिसंबर २००८ से साइंस ब्लोगर्स एसोसिएशनअनवरत रूप से कार्य कर रहा है और आज लगभग ढाई बर्ष बाद भी यह ब्लॉग सक्रिय है तथा अच्छे लेख उपलब्ध करवा रहा है|
मैंने अपना ब्लॉग "योगेन्द्र पाल की सूचना प्रौद्यौगिकी डायरी" दिसंबर २००७ में बना लिया था, पर उस समय एम.टेक. कर रहा था और पढाई का दबाब बहुत ज्यादा था इसलिए ज्यादा लेख नहीं लिखे, 2009 में मुझे सी-डैक में प्रोजेक्ट इंजीनियर के पद पर नियुक्त कर लिया गया, जहाँ पर इंटरनेट की सुविधा २४ घंटे मिलने लगी तो मैंने प्रतिदिन शाम को दूसरों के लिखे ब्लॉग पढ़ना प्रारंभ किया, कुछ पर अच्छी सामग्री थी कुछ ब्लॉग पर औसत था और कुछ ब्लॉग पर कचरा (दूसरों के धर्म पर कीचड उछालना) था |
जिन ब्लोगों पर कचरा था वो अपने एक ही लेख को ५-६ ब्लोगों पर प्रकाशित कर रहे थे और जिन ब्लोगों पर अच्छे लेख लिखे जा रहे थे वो अपने ब्लॉग को सिर्फ एक ही जगह (अपने ब्लॉग पर) प्रकाशित कर रहे थे, इस तरह के अच्छे ब्लॉग सामजिक विचारों, कविताओं-कहानियों, जीवन शैली के ब्लॉग थे, अतः ज्यादातर कचरे से ही ज्यादा सामना हो रहा था जिससे ब्लोगिंग के प्रति एक प्रकार की घृणा मन में पनप रही थी
एक दिन ब्लोगों पर घूमते-घूमते "चिट्ठाजगत" (जो अब बंद हो चुका है) पर पहुंचा, वहाँ पर ब्लोगों को विषयानुसार प्रकाशित किया जाता था. चिट्ठाजगत के जरिये पहली बार विज्ञान तथा तकनीकी ब्लोगों के संपर्क में आया जिसमे नवीन प्रकाश जी, जाकिर अली 'रजनीश' जी, डा. अरविन्द मिश्र जी तथा रवि रतलामी जी के ब्लॉग प्रमुख थे और प्रतिदिन इनको चिट्ठाजगत के जरिये पढ़ना शुरू किया
ये वह ब्लॉग थे (और हैं) जो ज्ञान बढाने में योगदान कर रहे थे और ब्लोगिंग को सकारात्मक दिशा की और ले जा रहे थे, चिट्ठाजगत का सहारा मिलने से मैं कचरा पढ़ने से पूरी तरह मुक्त हो गया क्यूंकि उसमे लेख के साथ में लेखक तथा चिट्ठे का नाम भी आता था :)
अततः मैंने भी लिखने का निश्चय किया और जनवरी २०१० में एक लेख लिखा, जिसका शीर्षक था "मुझे बहुत जल्दी है" इस लेख को पढ़ने के बाद जाकिर अली 'रजनीश' जीने मुझे "साइंस ब्लोगर्स एसोशिएशन" से लेखक के रूप में जुड़ने के लिए आमंत्रित किया, साइंस ब्लोगर्स एसोसिएशन का मैं पहले से ही मुरीद था और अब तो लेखक के तौर पर जुड़ने का मौका मिला था तो भला कैसे चूकता तो मैंने अपना पहला लेख लिखा जिसका शीर्षक था "गूगल गो" जो काफी पसंद किया गया उसके बाद कई लेख लिखे हालांकि नौकरी, पढाई तथा ब्लोगिंग में सामंजस्य बैठाने के चक्कर में ब्लोगिंग नियमित रूप से नहीं हो पाई
साइंस ब्लोगर्स एसोसिएशन से एक बात मेरे समझ में आई कि ब्लोगिंग की सहायता से कुछ सार्थक किया जा सकता है, ब्लोगिंग की सामर्थ्य भी धीरे धीरे समझ में आई, फिर ब्लोगिंग को मैंने गंभीरता से लेना शुरू किया औरयोगेन्द्र पाल की सूचना प्रौद्यौगिकी डायरी का वर्तमान स्वरूप आपके सामने है
साइंस ब्लोगर्स एसोसिएशन के जरिये ही मेरे दो लेख प्रिंट मीडिया में स्थान पा चुके हैं जिनके शीर्षक हैं-
क्या कहा वीडियो बुक तथा
आपदा में डाटा कैसे सुरक्षित रहेगा? आपदा प्रबंधन
साइंस ब्लोगर्स एसोसिएशन पर ही एक दिन अल्पना वर्मा जी की ऑडियो पोस्ट सुनी तो ऑडियो पोस्ट बनाने का विचार मन में आया और ये तीन ऑडियो पोस्ट आयीं
आवाज अल्पना जी की तरह मधुर तो नहीं है पर मेरे लिए ठीक है :)
साइंस ब्लोगर्स एसोसिएशन से जुड़ने के बाद डा. अरविन्द मिश्र जी से बात करने का मौका मिला जो एक सुखद अनुभव था, यहाँ पर डा. अरविन्द मिश्र जी से क्षमा चाहूँगा क्यूंकि उनके बार बार कहने पर भी मैं साइंस ब्लोगर्स एसोसिएशन पर नियमित लेख नहीं दे पा रहा हूँ, तथा विज्ञान कथा के बारे में तो अभी विचार भी नहीं कर पाया हूँ, असल में पी.एच.डी. में पढाई का काफी दबाब रहता है इसलिए किसी अन्य कार्य के लिए समय नहीं निकाल पाता हूँ
कुल मिला कर साइंस ब्लोगर्स एसोसिएशन ने मुझे-
जिसने मुझे प्रेरित किया
जिन ब्लोगों पर कचरा था वो अपने एक ही लेख को ५-६ ब्लोगों पर प्रकाशित कर रहे थे और जिन ब्लोगों पर अच्छे लेख लिखे जा रहे थे वो अपने ब्लॉग को सिर्फ एक ही जगह (अपने ब्लॉग पर) प्रकाशित कर रहे थे, इस तरह के अच्छे ब्लॉग सामजिक विचारों, कविताओं-कहानियों, जीवन शैली के ब्लॉग थे, अतः ज्यादातर कचरे से ही ज्यादा सामना हो रहा था जिससे ब्लोगिंग के प्रति एक प्रकार की घृणा मन में पनप रही थी
एक दिन ब्लोगों पर घूमते-घूमते "चिट्ठाजगत" (जो अब बंद हो चुका है) पर पहुंचा, वहाँ पर ब्लोगों को विषयानुसार प्रकाशित किया जाता था. चिट्ठाजगत के जरिये पहली बार विज्ञान तथा तकनीकी ब्लोगों के संपर्क में आया जिसमे नवीन प्रकाश जी, जाकिर अली 'रजनीश' जी, डा. अरविन्द मिश्र जी तथा रवि रतलामी जी के ब्लॉग प्रमुख थे और प्रतिदिन इनको चिट्ठाजगत के जरिये पढ़ना शुरू किया
ये वह ब्लॉग थे (और हैं) जो ज्ञान बढाने में योगदान कर रहे थे और ब्लोगिंग को सकारात्मक दिशा की और ले जा रहे थे, चिट्ठाजगत का सहारा मिलने से मैं कचरा पढ़ने से पूरी तरह मुक्त हो गया क्यूंकि उसमे लेख के साथ में लेखक तथा चिट्ठे का नाम भी आता था :)
अततः मैंने भी लिखने का निश्चय किया और जनवरी २०१० में एक लेख लिखा, जिसका शीर्षक था "मुझे बहुत जल्दी है" इस लेख को पढ़ने के बाद जाकिर अली 'रजनीश' जीने मुझे "साइंस ब्लोगर्स एसोशिएशन" से लेखक के रूप में जुड़ने के लिए आमंत्रित किया, साइंस ब्लोगर्स एसोसिएशन का मैं पहले से ही मुरीद था और अब तो लेखक के तौर पर जुड़ने का मौका मिला था तो भला कैसे चूकता तो मैंने अपना पहला लेख लिखा जिसका शीर्षक था "गूगल गो" जो काफी पसंद किया गया उसके बाद कई लेख लिखे हालांकि नौकरी, पढाई तथा ब्लोगिंग में सामंजस्य बैठाने के चक्कर में ब्लोगिंग नियमित रूप से नहीं हो पाई
साइंस ब्लोगर्स एसोसिएशन से एक बात मेरे समझ में आई कि ब्लोगिंग की सहायता से कुछ सार्थक किया जा सकता है, ब्लोगिंग की सामर्थ्य भी धीरे धीरे समझ में आई, फिर ब्लोगिंग को मैंने गंभीरता से लेना शुरू किया औरयोगेन्द्र पाल की सूचना प्रौद्यौगिकी डायरी का वर्तमान स्वरूप आपके सामने है
साइंस ब्लोगर्स एसोसिएशन के जरिये ही मेरे दो लेख प्रिंट मीडिया में स्थान पा चुके हैं जिनके शीर्षक हैं-
क्या कहा वीडियो बुक तथा
आपदा में डाटा कैसे सुरक्षित रहेगा? आपदा प्रबंधन
साइंस ब्लोगर्स एसोसिएशन पर ही एक दिन अल्पना वर्मा जी की ऑडियो पोस्ट सुनी तो ऑडियो पोस्ट बनाने का विचार मन में आया और ये तीन ऑडियो पोस्ट आयीं
आवाज अल्पना जी की तरह मधुर तो नहीं है पर मेरे लिए ठीक है :)
साइंस ब्लोगर्स एसोसिएशन से जुड़ने के बाद डा. अरविन्द मिश्र जी से बात करने का मौका मिला जो एक सुखद अनुभव था, यहाँ पर डा. अरविन्द मिश्र जी से क्षमा चाहूँगा क्यूंकि उनके बार बार कहने पर भी मैं साइंस ब्लोगर्स एसोसिएशन पर नियमित लेख नहीं दे पा रहा हूँ, तथा विज्ञान कथा के बारे में तो अभी विचार भी नहीं कर पाया हूँ, असल में पी.एच.डी. में पढाई का काफी दबाब रहता है इसलिए किसी अन्य कार्य के लिए समय नहीं निकाल पाता हूँ
- ब्लोगिंग की ताकत तथा सकारात्मकता का बोध करवाया
- मेरे लेखों की गुणवत्ता बढाने में मेरी मदद की
- मेरे लेखों को प्रिंट मीडियो में स्थान दिलाया
- ऑडियो पोस्ट से परिचित करवाया
- मेरे मित्रों को अपने ब्लॉग प्रारंभ करने के लिए प्रेरित किया
जिसने मुझे प्रेरित किया
- हिन्दी ब्लॉग एग्रीगेटर बनाने में
- ब्लोगिंग से सम्बंधित कोर्स को अपने कोचिंग सेंटर में प्रारंभ करने में
इन सभी बातों के लिए साइंस ब्लोगर्स एसोसिएशन, जाकिर अली 'रजनीश' जी तथा डा. अरविन्द मिश्र जी को असंख्य धन्यवाद
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