अगर आप ब्लॉगर हैं, तो कभी न कभी आपके मन में ये सवाल जरूर उठा होगा कि हिन्दी के बेहतरीन ब्लॉगकौन से हैं। हालांकि हर व्यक्ति के लिए बेहतरीन का पैमाना अलग-अलग हो सकता है, पर इस तरह की एक सूची बनाने के बारे में मैंने भी कई बार सोचा था। लेकिन इस काम में इतने प्रकार के रिस्क थे, इसलिए इसपर कभी अमल न कर सका। लेकिन जब ललित कुमार जी की इस सूची को देखा, तो सोचा कि क्यों न इसी बहाने कुछ चर्चा हो जाए।
ललित कुमार प्रोफ़ेशनल ब्लॉगर हैं। उन्होंने पिछले दिनों अपने ब्लॉग 'दशमलव' पर अच्छे ब्लॉग के लिए जरूरी चीजों पर विस्तार से चर्चा की थी। उस श्रृंखला में उन्होंने बहुत महत्वपूर्ण बातें कही हैं, जिनसे किसी का मतभेद नहीं हो सकता।
ललित जी ने अपनी चर्चा में जो बिन्दु रखे थे, उन्ही को आधार बनाकर उन्होंने हिन्दी के बेहतरीन ब्लॉगों का भी चयन किया है, जो नीचे दी गयी है। इस सूची को बनाने से पहले उन्होंने जो शर्तें रखीं, वह थी- 1.ब्लॉग कम से कम एक वर्ष पुराना हो, 2. उस पर कम से कम 100 पोस्टें प्रकाशित हों और 3. वह एक ही व्यक्ति के द्वारा लिखा जा रहा हो। इसके साथ ही साथ सिर्फ कविता वाले ब्लॉग भी इस सूची हेतु विचारार्थ स्वीकार नहीं किये गये।
हिन्दी के बेहतरीन ब्लॉगों के चयन में ललित जी ने लेखन की नियमितता, भाषा कौशल, ब्लॉग का रंग-रूप, लेखक की पाठकों के प्रति ज़िम्मेदारी, लेखन के प्रति गंभीरता, विषय चयन, विषय की जानकारी इत्यादि को आधार बनाया गया है। उन्होंने हिन्दी के 'महत्वपूर्ण ब्लॉगों की लिस्ट' को 'सामान्य ब्लॉग' और 'विषय आधारितब्लॉग' नामक दो श्रेणियों में बांटा है, जोकि निम्नानुसार है-
अच्छे हिंदी बलॉग पढ़नेवालों के लिए - Collection of Best Hindi Blogs.
इस समय हिंदीब्लॉगजगत में लगभग 300 से भी ज्यादा अच्छे ब्लॉगों की लिंक हैं. कृपया ब्लौगों के अपडेट होने की जानकारी के लिए कुछ मिनटों पर पेज को रीफ्रेश/रीलोड करें या अपने कीबोर्ड का 'F5' बटन दबा दें.
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कच्छ कथा-1: थोड़ा मीठा, थोड़ा मीठू- ऐसा ही दिखता था 'रोड मूवी' में अभय देओल का ट्रक गुजरात की सरकार पिछले कई दिनों से एकविज्ञापन कर रही है जिसमें परदे पर अमिताभ बच्चन कहते हैं, ''जिसने कच्छ...
एहतराम इस्लाम की ग़ज़लें- कवि /शायर -एहतराम इस्लाम सम्पर्क -09839814279 एहतराम इस्लाम की ग़ज़लें एक हर एक की नज़र से बचा ले गया उसे था कितना बा- कमाल उड़ा ले गया उसे . पहले तो कर...
बात ये अच्छी नहीं- दूसरे का दिल दुखाना, बात ये अच्छी नहीं हर हमेशा खिलखिलाना, बात ये अच्छी नहीं दिल के हर हालात का, इक अक्स चेहरे पर लिखा मौत पर भी गुनगुनाना, बात ये अच्छी नही...
चारित्रिक गुणों के संबंध- हे मानवश्रेष्ठों, यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है। पिछली बार हमने व्यक्ति के वैयक्तिक-मानसिक अभिलक...
मुझे ख़ुद से हैं बहुत-सी उम्मीदें...- *(मुंबई के महबूब स्टूडियो में पिछले दिनों दीपिका पादुकोण से मुलाक़ात हुई। वे फ़िल्म **‘**देसी ब्वॉयज़**’** की प्रमोशन में** **व्यस्त थीं। कुछ देर इधर-उधर ...
शुभम श्री की एक कविता ....- 'मेरे हॉस्टल के सफाई कर्मचारी ने सेनिटरी नैपकिन फेंकने से इनकार कर दिया है'- ''ये कोई नई बात नहीं लंबी परंपरा है मासिक चक्र से घृणा करने की 'अपवित्रता' की इ...
स्मार्टफोन और टैबलेट में आयेगा यूऍसबी ३.० पोर्ट- स्मार्टफोन और टैबलेट को भी मिलेगा हाइस्पीड यूऍसबी पोर्ट। [[ यह पोस्ट सामग्री का केवल एक अंश है। पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये कृपया ऊपर पोस्ट का टाइटल क्लिक कर ...
मेहदी हसन साहब ..उनसा कोई नहीं है!-मेहदी हसन साहब आई सी यू में भर्ती किये गए हैं ,उनके दुश्मनों की तबीयत नासाज है ..हम उनके भारतीय प्रशंसक ,दीवाने ये दुआ करते हैं कि वे जल्दी ठीक हों और फिर ...
दिल्ली का दिल --कनॉट प्लेस का सेन्ट्रल पार्क---.- देश का दिल --दिल्ली । दिल्ली का दिल --कनॉट प्लेस ( सी पी ) । और सी पी का सेंटर --सेन्ट्रल पार्क । कभी यह सिर्फ एक पार्क होता था । अब यह एक सांस्कृतिक केंद्...
१४ वां भारंगम: छठा दिन(चांडालिका)- इस वर्ष का भारंगम गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर को समर्पित है. इसलिये भारंगम में उनके नाटकों की कई प्रस्तुतियां हो रहीं है. भारंगम का उद्घाटन भी रतन थियम निर्...
फासला उम्र का- फासला उम्र का दिख जाता है बस यूँ ही विचारों के फासले की उम्र नहीं दिखती फिर भी सदा उम्र से विचारों को आँका जाता, क्या अधिक उम्र से ही,जीवन दिख पाता? सच है ...
चांद किसी काले चेहरे का सफेद दाग़ है-उसके पास उम्र के तीन हिस्से थे। एक हिस्सा थोड़ा छोटा था, मगर उसे बेहद पसंद था। जैसे घर के छोटे बेटे अमूमन सबको बहुत पसंद होते हैं। ये बस घर में ही मुमकिन ह...
टीवी के लिए फिल्मों की काट-छांट-[image: टीवी के लिए फिल्मों की काट-छांट]-अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों तिग्मांशु धूलिया बहुत परेशान थे। उनकी फिल्म साहब बीवी और गैंगस्टर को सेंसर बोर्ड के क...
लोहड़ी की शुभकामनाऍं- नये साल में कोहरे और सर्द हवाओं के बीच चुपके से लोहड़ी दस्तक दे रहा है। पड़ासी रात को अलाव जलाऍंगे, तो उसकी धमक हम तक भी आएगी। गाजर के हलवे की खूश्बू से घ...
उमर बढ गई या कम हो गई.......?????-आज मन में यह ख्याल आ रहा है कि खुशियां मनाऊं या गम....? आज जन्मदिन है मेरा। उम्र एक साल बढ गई.... या कम हो गई....., क्या कहूं, क्या समझूं। वैसे जन्...
इप्टा के साथ तीन दिन - विनोद साव- शाम को चार बजे नेहरु हाउस पहुंचा तो सन्नाटा था। जयप्रकाश दिखे, बताए कि ‘सब लोग रैली में शामिल हैं, चलो हम लोग भी चलते हैं।’ इतने में ही विनोद कुमार शुक्...
तुच्छ-प्रेम -- उच्च-प्रेम- क्या प्रेम भी तुच्छ और उच्च की श्रेणी में विभाजित हो सकता है ? कल एक चर्चा के दौरान मित्र ने कहा उसका 'स्त्री-प्रेम' तुच्छ है। वह केवल 'उच्च प्रेम' अर्थात ...
‘द स्पाई हू केम इन फ्रॉम द कोल्ड’- *संदीप मुदगल* गत सदी शीत युद्ध के नाम थी। दुनिया के पूंजीवादी और वामवादी धड़ों में द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से जो खींचतान देखने को मिली थी, उसका अस्तित्व ...
दो नई कविताएं- शुक्रवार की साहित्य वार्षिकी-2012 में ये दो नई कविताएं प्रकाशित हुई हैं। मेरे मित्र और पाठक जानते हैं कि इधर मेरी कविताओं का स्वर बहुत बदला है और ये कवित...
समकालीन कविता- मुंबई के कुछ मित्रों ने *चिंतनदिशा* का प्रकाशन फिर से शुरू किया है. पिछले अंक में *विजय बहादुर सिंह* और *विजय कुमार* के बीच कविता की चिंताओं को लेकर हुआ...
शुभम श्री की कविताएं- ** * मेरे हॉस्टल के सफाई कर्मचारी ने सेनिटरी नैपकिन फेंकने से इनकार कर दिया है* ये कोई नई बात नहीं लंबी परंपरा है मासिक चक्र से घृणा करने की 'अपवित्रता' की ...
" चुनाव-चिन्ह डायनासोर क्यों न हुआ .......?"- राजनैतिक दल के चुनाव-चिन्ह वाले सभी बुत ढक दिए जायेंगे | गोया कहीं बुत खुले रह गए तो वे मतदाताओं को आवाज़ लगा लगा के अपने पक्ष में बहला फु...
अपने ब्लॉग को गूगल ब्लॉग सर्च में कैसे जोडें- गूगल सर्च इंजन इंटरनेट में डाली जा रही सामाग्रियों को लगातार स्वत: खोजकर हमें प्रस्तुत करता है. गूगल के इस निरंतर अद्यतन कार्य के बावजूद यदि आपको लगता है क...
यूँ ही .....कभी कभी...- *रद्दी पन्ना -* सफ़ेद कोरे पन्ने सी थी मैं जिस पर जैसी चाहे इबारत लिख सकते थे तुम पर तुमने भी चुनी काली स्याही यह सोच कर कि उसी से चमकेगा पन्ना पर भूल ...
जाने क्या चाहे मन बावरा...- सुबहों का कोई ठिकाना नहीं कि वे कब आ धमकें. कभी तो आधी रात को दरवाजे पर दस्तक देती हैं और कभी दिन के दूसरे पहर भी ऊंघती सी आसमान के किसी कोने में दुबकी र...
नर्तकियाँ और पृथ्वियाँ- और फिर हमने ’पीना’ देखी. जैसे उमंग को टखनों के बल उचककर छू दिया हो. धरती का सीना फाड़कर बाहर निकलने की बीजरूपी अकुलाहट. ज़िन्दगी की आतुरता. जैसे किसी ने सतरं...
सिद्धेश्वर की नई किताब का स्वागत करें...-मेरे अत्यंत प्रिय मित्र सिद्धेश्वर की नयी किताब आई है...पहला कविता संकलन "कर्मनाशा"...उसका लोकार्पण भी कविता समय के दौरान होना था लेकिन किन्हीं दिक्कतों क...
अनन्त के गुण हैं अजीब- This post in HIndi (Devnagri script) talks about an interesting video about infinity. इस चिट्ठी में अनन्त के अजीब गुणों को बताते एक रोचक विडियो की चर्चा है...
गीता और फैसले का क्षण- रूस की एक अदालत में गीता को आतंकवाद समर्थक ग्रंथ घोषित करने का मुकदमा अभी चर्चा से बाहर भी नहीं हुआ था कि भारतीय मूल के जाने-माने ब्रिटिश अर्थशास्त्री लॉर्...
स्मृति- *'स्मृति' किताब है, जिसमें कथा ही कथा है, जो विस्तार की फिराक में हर वक्त लगा रहता है लेकिन मैं कविता की खोज में हूं, कुछ शब्द हैं, कुछ राग हैं,केंद्र घर ...
पापा को भी प्यार चाहिए -सतीश सक्सेना-** *निम्न रचना में व्यथा वर्णन है उन बड़ों का जो अक्सर अपने आपको ठगा सा महसूस करने लगते हैं ! कृपया किसी व्यक्तिविशेष से न जोड़ें ...* *महसूस करें बुजुर्गो...
ईश्वर पाने का शार्टकट- *ईश्वर को पाने का सरलतम मार्ग कौन सा है?* जे कृष्णमूर्ति : मुझे नहीं लगता कि कोई सरल मार्ग है। क्योंकि ईश्वर को पाना अत्यंत कठिन, अत्यधिक श्रमसाध्य बात ह...
वह बांसुरी जाने कहां गई जो मुहब्बत का गीत गाती थी...- घर, क़बीला, समाज, मज़हब और सिसायत भी हमारे चाँद-सूरज होते हैं, और इनको लगे ग्रहण के वक़्त जब किसी शायर, आशिक और दरवेश का जन्म होता है तो यह हकीकत है कि दर...
खिड़्कियाँ....- इस तरह की अकेली दौपहरें... ना जाने कितनी खिड़कियों के साथ मैंने काटी हैं..। मेरा सबसे सुंदर वक़्त इन खिड़कियों से झांकते हुए ही बीता है...। एक खिड़की मुझे...
ये क्या कम है मेरी शाखों पे फिर भी कुछ परिंदे हैं- *आप सब को नव वर्ष की हार्दिक शुभ-कामनाएं. * हजारों में किसी इक आध के ही गैर होते हैं वगरना दुश्मनी करते हैं जो होते वो अपने हैं कभी मेरे भी दिल में चांदन...
मोक्ष- इन बीस सालों में वह अपनी बेटी से नहीं मिला था | वह नहीं चाहता था कि उसकी बेटी को पता चले कि उसका पिता कौन है | अपनी सारी हैवानियत को आज ताक पर रखकर वह ...
शक्ति, जिस से लुटेरे थर्रा उठें- *अनवरत के सभी पाठकों और मित्रों को नव वर्ष पर शुभकामनाएँ!!!* *नया वर्ष आप के जीवन में नयी खुशियाँ लाए!!* भारतीय जनगण को इस वर्ष निश्चित रूप से विगत वर...
2011 बीता नहीं है!!!- समय कभी नहीं बीतता। बीतना प्रकृति में है ही नहीं। मात्र रूपांतरण है, लेकिन मनुष्य़ बीतता है। यही नहीं, उसे अपने बीतने की चेतना भी है। बहुत पुराने जमाने में...
बीतते क्षणों में...- दे के अपनापन अनोखा, सीख सौ-सौ काम वाली। आज जबकि नेह बाँधा, तुम विदा दे जा रहे हो। अश्रुओं की लड़ी दे दूँ, नेह जल की झड़ी दे दूँ। थाम अंगुलियाँ निहारूँ, बा...
जा रहा है बचपन आ रहा पचपन ....- सुबह सुबह अच्छी खासी नींद लगी थी की बच्चों का शोरगुल सुना तो नींद खुल गई . कमरे से बाहर निकल कर देखा की परिवार के बच्चे कह रहे थे आज इकतीस दिसंबर है और कल ...
तीस साल पहले नया साल- तीस साल पहले कभी ये कविताएँ लिखी थीं. दूसरी वाली शायद 1990 के आसपास जनसत्ता के चंडीगढ़ एडीशन में छपी थी. उन दिनों दक्षिण अफ्रीका में नस्लवादी तानाशाही थ...
….चोखा मम्मी की याद आने पर बनेगा-पापा की याद आ रही थी तो लिट्टी बनाने लग गया: चोखा मम्मी की याद आने पर बनेगा ध्यान कहाँ है पापाजी ?: फ़टाफ़ट टिपिया के काम खतम कीजिये! पाण्डुलिपि से गुम हस्तल...
आलोचना के कॉमनसेंस के प्रतिवाद में-हिंदी आलोचना में इनदिनों एकदम सन्नाटा है। इस सन्नाटे का प्रधान कारण है आलोचना सैद्धांतिकी, समसामयिक वास्तविकता और सही मुद्दे की समझ का अभाव। यह स्थिति सामा...
दाता- इतवार का दिन था। कई दिनों के कोहरे के बाद कुनमुनी धूप निकल कर आई थी। साढ़े-दस ग्यारह बजे की मुतमईन घड़ियों में बच्चे और नौजवान जहाँ जगह मिले खेल रहे थे। प...
हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन...-कई तो ऐसे ही चले गए थे, बिना इस दिन का इंतज़ार किये. वो भाग्यशाली रहे थे कि उनको अपमान के ये कड़वे घूंट जो नहीं पीने पड़े. वे जो अब तक जा चुके थे, वे सब, एक ए...
श्रद्धांजलि के साथ अदम गोंडवी की दो गज़लें- 1. हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िये हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है दफ़्न है जो बात,...
कुछ ख़ुश्बूएँ यादों के जंगल से बह चलीं...-कुछ ख़ुश्बूएँ दिल के कितने क़रीब होती हैं... कभी होता है ना बैठे बैठे अचानक कोई ख़ुश्बू याद आ जाती है और बस मन बच्चों सा मचल उठता है उसे महसूस करने को.....
उफ! ये सोच- सोचते-सोचते… दिमाग की नसें फूल गई हैं ये भूल गई हैं सोना साथ ही भूल गई हैं सोते हुए ‘इस आदमी’ को सपने दिखाना रात-दिन बस एक काम सोचना...सोचना...सोचना...
अदम जी मुझे लौकी नाथ कहते थे- जयपुर में अदम जी मंच संचालन कर रहे थे। मुझे कविता पढ़ने बुलाने के पहले एक किस्सा सुनाया। किसी नगर में एक बड़े ज्ञानी महात्मा थे। उनका एक शिष्य था नाम था...
उर में कितने भाव सँजोए(गीत) : नागेश पांडेय 'संजय'- गीत : नागेश पांडेय 'संजय' चित्र : रामेश्वर वर्मा उर में कितने भाव सँजोए पर कहने की कला न आई । अत: उचित है मन की भाषा पढ़ने का अभ्यास कीजिए ! इच्छाओं का ...
कच्ची शराब से मरे तो क्या मरे- 45 मौत...फिर 73 फिर 93, 125, 143 और आख़िर में 170 पार मक़तूलों* में शामिल थे रिक्शेवाले, रेहड़ी वाले और मुमकिन है कुछ भिखारी भी मक़तूल..हां मक़तूल ही तो थ...
प्यार ही प्यार, बेशुमार..- मन में प्यार की तरंगें पछाड़ मारती हों तो दिल बड़ी बेदर्दी से टूटता है की बात हमें बिना इम्तियाज़ अली की- ओह, कैसी तो तिलकुट दिलकारी- समझदारी, और संजय '...
मीडिया की आज़ादी और पत्रकारिता के रंग सियार- *भूपेन सिंह* *काटजू से कौन डरता है?* भारतीय प्रेस परिषद के नए अध्यक्ष मार्कन्डेय काटजू ने कॉरपोरेट समाचार मीडिया की अराजकता और समाज विरोधी गतिविधियों पर दो...
आ रहा हुं मेरे वतन मै...- यह मेरी पोस्ट उस समय प्रकाशित होगी जब मे उडन खिटोले पर बेठ कर वापिस अपने देश की ओर आ रहा हुंगा, जब भी कभी ऎसे गीत सुनता हुं तो मुझे अपना बचपन, अपने बचपन के...
'लेडिस' से त्रस्त जेंट्स- हमारे देश में एक तरफ तो महिलाओं की बराबर की हिस्सेदारी की बात होती है, तो वहीँ दूसरी ओर महिलायें खुद महिला होने का फायदा उठाती हैं. जी नहीं, ये कोई नारीवाद क...
ज़िन्दगी उत्तर भी है- *ज़िन्दगी इक प्रश्न भी है ज़िन्दगी उत्तर भी है * *फल कहीं वरदान का शापित कहीं पत्थर भी है * * * *है गुनाहों और दागों से भरा दामन कहीं * *पर कहीं दरगाह की इक...
उत्तेजक चर्चा के दबाव में प्रयाग शुक्ल- रीता भदौरिया के दूसरे काव्य संग्रह के लोकार्पण के अवसर पर वीरेन डंगवाल, प्रयाग शुक्ल, कवयित्री स्वयं, अशोक चक्रधर और असगर वजाहत पानी पर गांठ के बहाने कविता ...
कुन फाया, कुन : एक रूहानी अहसास- मुझे सूफी संगीत वैसे भी बहुत अच्छा लगता है। चाहे हो फिल्मों से हो या फिर गैर फिल्मी। आजकल एक गीत मेरे जहन में लगातार घूम रहा है, इसके बिना दिन अधूरा अधूरा ...
नशा है सबमें मगर रंग नशे का है जुदा........- "गीत लिखने वाले ने ठीक लिखा है, मतलब निकालने वालों ने भी ठीक मतलब निकाला है। अन्ना का फ़ार्मूला भी ठीक है और इस बात पर अन्ना की खिंचाई करने वाले भी ठीक है...
विदेशी कंपनियों को मनमोहन का क्रिसमस तोहफा- ** विकास के जिस मॉडल के खिलाफ पूंजीवाद के ही उत्स देश अमेरिका में जब आक्युपाई वाल स्ट्रीट यानी वाल स्ट्रीट पर कब्जा करो आंदोलन चल रहा है, ठीक उन्हीं दिन...
यूरोप के एक विफल क्रांतिकारी से : वाल्ट व्हिटमन- अमेरिका में मुक्त छंद के पिता माने जाने वाले कवि वाल्ट व्हिटमन ( मई 31, 1819 – मार्च 26, 1892) कवि होने के साथ एक निबंधकार और पत्रकार भी थे. अपने समय के स...
- *आवाज दे तू कहाँ है *** *एक दिन वीरू अपने कुछ दोस्तों के साथ बैठ कर दारू पी रहा था. पास से गुजरते हुए मोहल्ले के एक बुजर्ग सज्जन ने कहा की बेटा में तुम्हे ...
सपना आगे जाता कैसे?- छोटा सा इक गाँव था जिसमें दीये थे कम और बहुत अंधेरा बहुत शज़र थे थोडे घर थे जिनको था दूरी ने घेरा इतनी बडी तन्हाई थी जिसमें जागता रहता था दिल मेरा बहुत कदी...
अभिनेत्रियां- 'हंस' के नवम्बर, 2011 के अंक में छम्मकछल्लो की कहानी छपी है- 'अभिनेत्रियां'. तमिलनाडु की तत्कालीन चुनावी स्थिति को केंद्र में रखकर लिखी गई यह कहानी शायद आप...
नज़मा आत्मविरोध में विज्ञापन करती है-बिल्डिंगों के जंगल हैं रस्सियों पर लटककर चमकीले शीशों की सफाई चलती रहती है कारोबारी चौराहे के चौपड़ में नज़मा दिन भर बैंक के सामने बैठी रहती है बैंक के आ...
विरुद्ध.....- *(अपने दूसरे ब्लॉग " अपनी बात..." पर मैने श्री हरिशंकर परसाई जी से जुड़ा अपना संस्मरण पोस्ट किया तो उसमें वसुधा में प्रकाशित कहानी का भी ज़िक्र आया. मेरे क...
सीधे दिल से...- मुकम्मल रौनक की चाह में रौशनी भी जाती रही *इक ख्वाब के खातिर हमने अंधेरों से दोस्ती कर ली...* यादों के आशियाने में वो आ आ के जाती रही *मायूसी के वायस हमन...
विचारोत्तेजक हिन्दी लेख- विचारोत्तेजक लेख जीवन की दिशा बदल सकते हैं। उनमें समाज को सही दिशा देने की शक्ति भारी होती है। इसी उद्देश्य से अंतरजाल पर विद्यमान कुछ लेखों के लिंक का संग...
दिए के जलने से पीछे का अँधेरा और गहरा हो जाता है…- मैं शायद कोई किताब पढ़ रही थी या टी.वी. देख रही थी, नहीं मैं एल्बम देख रही थी, बचपन की फोटो वाली. अधखुली खिड़की से धुंधली सी धूप अंदर आ रही थी. अचानक डोरबे...
सभ्यासभ्य संवाद- रामलीला मैदान में एक बहस असभ्य : हे बाबू साहब, यह क्या तमाशा हो रहा है यहाँ? सभ्य : तमाशा? यह तमाशा है? तू यहाँ इस ऐतिहासिक रामलीला मैदान में खड़ा है। उधर म...
भ्रष्टाचार की गंगा का मुहाना बंद करना होगा-*पी. साईनाथ* *अनुवाद: मनीष शांडिल्य* *मनमोहनॉमिक्स* के करीब 20 साल पूरे हो रहे हैं, अतः उस कोरस को याद करना बहुत वाजिब होगा, जिसका राग मुखर वर्ग पहले तो खू...
ग़रीबी रेखा के ठीक ऊपर- On the Way to Daarjiling - Raghu Rai वे कौन लोग होते हैं जो किसी अपरिचित की शवयात्रा में चलते हैं हुजूम के साथ उदासी चेहरों पर लादे कौन होते हैं वे आध...
दो वर्ष पूरा होने की ख़ुशी ज्यादा या गम....-२३ सितम्बर को इस ब्लॉग के दो साल हो गए. पर इस बात की ख़ुशी नहीं बल्कि अपराधबोध से मन बोझिल है. पिछले साल इस ब्लॉग पर सिर्फ दो लम्बी कहानियाँ और एक किस्त,...
वक़्त रिअर ग्लास की तरह है- वक़्त मोड़ देता है कभी कान उमेठकर हौले से कभी बाहें मदोड़ कर झटके से और कभी इस तरह कि बस चौंकने भर का मौका होता है वो मोड़ता है तो मुड़े बिना मैं नहीं और वो ...
उठान डगर- उठान डगर मेरे घर के पास स्थित हनुमान मंदिर की सीढ़ियों पर कुछ वर्ष पूर्व चित्रकारी की गई थी। उन चित्रों में से कुछ को मैंने अपने कैमरे में कैद कर लिय...
happy birth day papa...- *डियर पापा... ये मेरा आपको लिखा पहला खत है! सालों से बहुत कुछ मन में है जो कहना चाहती थी पर कैसे कहती.. जो आप तक पहुँच पाता? आज आप होते तो चौंसठ साल के होत...
रुकी हुई रेल- *हिलते पर्दे से छनकर रौशनी आती है , शीशे के बोल में अरालिया की एक लतर , किताबों की टांड में एक ग्रॉसमन , रिल्के की ना समझी कोई कविता की एक अदद पंक्ति, चाय ...
ईआईएच : निवेशकों की पौ-बारह संभव-ओबेराय होटल की मालिक कंपनी ईआईएच के शेयर में एक बार फिर जोरदार हलचल शुरु हो गई है। यह हलचल सेबी द्धारा टेकओवर कोड में परिवर्तन किए जाने के तत्काल बाद आईट...
Five Bauncing Balls- Speech by Bryan Dyson (CEO of Coca Cola) 'Imagine life as a game in which you are juggling some five balls in the air। You name them - work, family, he...
क्या भिखारी भी मानव हैं ?? (Are Beggars Also Human??)- मेरे घर के पास हाईवे पर एक बहुत ही व्यस्त चौराहा है जहां हरीबत्ती के लिये अकसर 3 मिनिट रुकना पडता है. वहां एक स्थाई भिखारिन है जिसको मैं पिछले दस साल से पै...
इफ़ आई वर अ बॉय / अगर मैं लड़का होती-“अगर मैं एक दिन के लिये भी लड़का बन सकती तो मैं अपनी मर्ज़ी से देर तक घर के बाहर रुक सकती थी. दोस्तों के साथ बियर पीती, जो दिल चाहे वो करती और कोई मुझ पर किस...
लेखक भाषा का आदिवासी है- *(१५ फरवरी 2011 को यह वक्तव्य मैंने लिखा था. तकनीकी असुविधाओं के बावजूद इसे आज अपने गाँव में लगा रहा हूँ. साहित्य अकादमी पुरस्कार का यह औपचारिक 'स्वीक...
छत्तीसगढ़ी गज़ल : पीरा संग मया होगे-अइसन मिलिस मया सँग पीरा, पीरा सँग मया होगे. पथरा ला पूजत-पूजत मा, हिरदे मोर पथरा होगे. महूँ सजाये रहेंव नजर मा सीस महल के सपना ला , अइसन टूटिस सीस महल के ...
हमें इंतज़ार कितना ये हम नही जानते-खाना जल्दी से बना के रख देना है। वर्ना किचेन में ही आ के बैठ जायेगा। और एक बार बात शुरू होगी तो खतम ही नही होगी। फिर दीदी गुस्सा होंगी। किचेन में ही बै...
महिलाएं जो रक्तदान नहीं कर सकती- उच्च-मध्यम वर्ग से सम्बन्ध रखती महिलाएं एक के बाद एक रक्तदान के लिए अयोग्य निकलती रही. मुझे आश्चर्य हुआ. किसी चीज की कमी इन्हे है नहीं...फिर?
विश्वास- ------------------------------ ओ ! जीवन के थके पखेरू, बढ़े चलो हिम्मत मत हारो, पंखों में भविष्य बंदी है मत अतीत की ओर निहारो, क्या चिंता धरती यदि छूटी उड़ने...
मध्यप्रदेश में बस्तर बनाने की कवायद-मध्यप्रदेश में माओवादी आतंक के बारे में अब सनसनीखेज खुलासे हो रहे हैं। प्रदेश की राजधानी भोपाल में न सिर्फ नक्सली पर्चे और साहित्य बरामद हुए हैं, बल्कि हथ...
एक पुरातत्ववेत्ता की डायरी – ग्यारहवाँ दिन – तीन- *भूख मिटाने का कुछ इन्तज़ाम किया जाए* अजय ने अचानक बीच में सवाल किया “ लेकिन यार इन गुफाओं का पता कैसे चला ? इन तक भी डॉ. वाकणकर जैसा कोई व्यक्ति पहुँचा था...
जाने जां.....!!!- जानां , आज मुझे उन जंगलो की बहुत याद आई , जहाँ , हम हाथ में हाथ डाल कर घूमे थे.. याद है तुम्हे , हम जब घने जंगलो में घूम रहे थे , तो ड्राईवर ने हमें एक स...
विनायक सेन के समर्थन में- *राजद्रोह बनाम देशद्रोह* *राजकिशोर * * * बिनायक सेन को राजद्रोह के लिए उम्रकैद की सजा दी गई है। इसके औचित्य पर काफी बहस हुई है और आगे भी होती रहेगी। इ...
Broccoli Soup - ब्रोकली सूप- ब्रोकली के सूप कई तरह से बनाये जाते हैं. सफेद वेजीटेबल स्टॉक से बना यह ब्रोकली सूप जितना बनाने में आसान है उतना ही पीने में मजेदार.
दुनियादारी के दबाव में डगमगाता आत्मविश्वास- मेरी बचपन की सहेली ने, अपनी एक विचित्र समस्या से निज़ात पाने के लिए मुझे फोन किया और कहा,“ रचना! मेरे घर के सामने एक औरत आकर बस गयी है जो बहुत फूहड़ और बदत...
दैने बाले सिरी भगवान और इन्तलनेछनल फकील- हफ़्ते के एक नियत दिन खताड़ी और उसके आसपास के मोहल्लों में भीख मांगने आने वाला एक बूढ़ा इतनी ज़्यादा दफ़े अपनी बेहद सड़ियल और भर्राई हुई आवाज़ में दैने बाल...
पश्मीना बालों में उलझी समय की गर्मी-उत्तरों से भरे इस दौर में अपर्णा भटनागर की कविताओं की प्रश्नाकुलता बेचैन कर देती है. अगर उनमें सुन्दर की सम्भावना है तो समय की खराशें भी हैं, आकांक्षाओं ...
किशोर'दा - ये शाम भी अजीब है…!-किशोर'दा : याद तो हमेशा आते रहते हैं, सो कैसे कहूँ कि आज ज़्यादा याद आए? मगर यह कह सकता हूँ कि आज मन किया कि उनके कुछ गीत सुनाऊँ चाहने वालों को - जो शायद उन...
Akhilesh ji ko patr- 27. 9. 10 प्रिय अखिलेश जी, आपका पत्र संख्या 2, दिनांक 21. 9 10 का पत्र मिला। धन्यवाद। आपने पुस्तकें वापिस करने वाले प्रश्न पर जवाब सोच समझकर ही दिया होगा तभ...
साहित्य का पर्यावरण यानी भाषा छुट्टी पर-हिन्दी भाषा-साहित्य की ओज़ोन लेयर में छेद हो गया है . तमाम तरह की हानिकारक विकिरणें समूचे साहित्य के पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही हैं . कहीं-कहीं तो स्थिति...
अभिशप्त एक और भोपाल! एंडरसन भागा नहीं है !!!!- ये देश में हर जगह पैदा हो रहे भोपाल का किस्सा है ,ये हिंदुस्तान के स्विट्जरलेंड की तबाही का किस्सा है ,ये रिहंद बाँध में अपने महल के साथ डूब गयी रानी र...
साधनाजी,उपासनाजी, उर्फ…- बाबाओँ का हल्ला है। बल्कि दिल्ली के बाबा भीमानंद का विकट कालगर्ली रैकेट देखकर यह नहीं समझ आ रहा है कि अब बाबाजी का कौन सा मुहल्ला है। सारे मुहल्ले ही उनके ...
किताबें बचेंगी तो पढ़ना बचेगा, लिखना भी-कई समय से मन था कि कोई ऐसी जगह बने जहां हिंदी किताबों के बारे में नये सिरे से बात हो सके. अगर किताबें होंगी तो लिखना और पढ़ना भी बचा रहेगा. हमारी ये बातचीत...
औक़ात में रखनेवाले...- यार ये तो वही है जो महिलाओं के बारे में बकवास करती रहती है। ये कहते ही मेरे कान खड़े हो गए। स्वभाव और आवाज़ दोनों में ही मैं तेज़ हूँ। और मैंने कहा हाँ ठीक ह...