नई दिल्ली. सेहत की दुनिया में नई क्रांति का वक्त आ गया है। मॉडर्न लाइफस्टाइल के चलते ज़्यादातर लोग इनदिनों तनाव, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, दिल के रोग जैसी बीमारियों से जूझ रहे हैं। ऐसे में उनके लिए रोजमर्रा की ज़िंदगी में अपनी सेहत पर नज़र रखना जरूरी हो गया है। ब्लड शुगर लेवल, डायबिटीज टेस्ट, ब्लड प्रेशर, ईकोकार्डियोग्राम, हार्ट रेट, पानी की गुणवत्ता जैसी चीजों की जांच के लिए आपको अभी तक बहुत मशक्कत (मरीजों को जान-बूझ कर चूना लगाते हैं डॉक्टर: एम्स) करनी पड़ती है। लेकिन 2 रुपये से लेकर 50 रुपये के मामूली खर्च में बिना ज़्यादा भागदौड़ के आप ये सभी टेस्ट करवा सकते हैं।
दो रुपये से कम की कीमत (अस्पताल में हर टेस्ट का बढ़ेगा चार्ज) और महज एक मिनट में जल्द ही आप अपना ब्लड शुगर लेवल टेस्ट कर सकेंगे। इस टेस्ट के लिए ग्लूकोज़ मीटर की तुलना में 1000 गुना कम खून की ही जरूरत होगी। (मरीज और डॉक्टर का रिश्ता कारोबारी और खरीदार का रिश्ता बना)
वहीं, दूसरी ओर अगर आप 50 रुपये खर्च करने के लिए तैयार हैं तो देश में एक ऐसा टैबलेट यानी मोबाइल यंत्र आ गया है जो कुछ ही मिनटों में कई सारे टेस्ट कर देगा। इस डिवाइस को 'स्वास्थ्य स्लेट' का नाम दिया गया है और यह डिवाइस किसी भी आईपैड या टैबलेट जैसी ही है। बस, अंतर इतना है कि इसमें मेडिकल परीक्षणों से जुड़े कुछ यंत्र लगाए गए हैं।
अब आया सेहत का 'टैबलेट'
बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट के मुताबिक
देश में एक ऐसा टैबलेट यानी मोबाइल यंत्र आ गया है जो कुछ ही मिनटों में डायबिटीज टेस्ट, ब्लड प्रेशर, ईकोकार्डियोग्राम, हार्ट रेट, पानी की गुणवत्ता जैसे टेस्ट कर देगा और वह भी आपके घर आकर वाजिब कीमत पर। 'स्वास्थ्य स्लेट' नाम के इस टैबलेट से टेस्ट करने पर न सिर्फ समय बचेगा बल्कि यह बहुत ही किफायती है। इस डिवाइस से टेस्ट में महज 50 रुपये का खर्च आता है। 'स्वास्थ्य स्लेट' किसी भी आईपैड या टैबलेट जैसा ही है। टैबलेट के ज़रिए न केवल दूर गांवों तक मेडिकल टेस्ट की सुविधा पहुंचाई जा सकती है बल्कि इसके आकड़ों को लंबे समय तक एक डाटा बैंक में सुरक्षित रखा जा सकता है। जब चाहें जहां चाहें एक नंबर के ज़रिए आप ये डाटा अपने लिए मुफ्त में इस्तेमाल कर सकते हैं। यह टैबलेट और इसके साथ के सारे अटैचमेंट अभी क़रीब 20 हज़ार रुपये की कीमत पर उपलब्ध हैं, जो आगे चल कर 15 हज़ार रुपये के हो जाएंगे और समय के साथ इसमें और भी टेस्ट जोड़े जा सकते हैं
।कोई भी कर सकता है इस्तेमाल
बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट के मुताबिक
'स्वास्थ्य स्लेट' को कानव ने बनाया है। कानव ने अमेरिका में एरिज़ोना यूनिवर्सिटी में लंबे समय तक पढ़ाने का काम करने के बाद कानव देश वापस लौटे हैं। कानव कहते हैं कि भारत में डॉक्टरों को पश्चिमी देशों की तुलना में कई गुना ज़्यादा काम करना होता है। कानव का कहना है कि इसी वजह से उन्होंने तय किया कि वे ऐसी तकनीक बनाएंगे जो कि एक आम ग्रामीण स्वास्थ्यकर्मी के लिए हो। कानव के मुताबिक, 'ज़्यादातर लोगों को यह पता ही नहीं होता कि उन्हें बीपी या डायबिटीज़ की बीमारी है। अगर वे शुरुआत में ही दवा ले लें तो वे आगे के भारी भरकम इलाज से बच जाएंगे।'
कानव का कहना है कि उनका टैबलेट और उससे जुड़े अटैचमेंट कोई भी चला सकता है।
कोई भी कर सकता है इस्तेमाल
बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट के मुताबिक
'स्वास्थ्य स्लेट' को कानव ने बनाया है। कानव ने अमेरिका में एरिज़ोना यूनिवर्सिटी में लंबे समय तक पढ़ाने का काम करने के बाद कानव देश वापस लौटे हैं। कानव कहते हैं कि भारत में डॉक्टरों को पश्चिमी देशों की तुलना में कई गुना ज़्यादा काम करना होता है। कानव का कहना है कि इसी वजह से उन्होंने तय किया कि वे ऐसी तकनीक बनाएंगे जो कि एक आम ग्रामीण स्वास्थ्यकर्मी के लिए हो। कानव के मुताबिक, 'ज़्यादातर लोगों को यह पता ही नहीं होता कि उन्हें बीपी या डायबिटीज़ की बीमारी है। अगर वे शुरुआत में ही दवा ले लें तो वे आगे के भारी भरकम इलाज से बच जाएंगे।'
कानव का कहना है कि उनका टैबलेट और उससे जुड़े अटैचमेंट कोई भी चला सकता है।
बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट के मुताबिक
'स्वास्थ्य स्लेट' को कानव ने बनाया है। कानव ने अमेरिका में एरिज़ोना यूनिवर्सिटी में लंबे समय तक पढ़ाने का काम करने के बाद कानव देश वापस लौटे हैं। कानव कहते हैं कि भारत में डॉक्टरों को पश्चिमी देशों की तुलना में कई गुना ज़्यादा काम करना होता है। कानव का कहना है कि इसी वजह से उन्होंने तय किया कि वे ऐसी तकनीक बनाएंगे जो कि एक आम ग्रामीण स्वास्थ्यकर्मी के लिए हो। कानव के मुताबिक, 'ज़्यादातर लोगों को यह पता ही नहीं होता कि उन्हें बीपी या डायबिटीज़ की बीमारी है। अगर वे शुरुआत में ही दवा ले लें तो वे आगे के भारी भरकम इलाज से बच जाएंगे।'
कानव का कहना है कि उनका टैबलेट और उससे जुड़े अटैचमेंट कोई भी चला सकता है।
टैबलेट में होगी तस्वीर और डेटा
इस टैबलेट में जीपीएस की मदद से इससे यह भी पता लग जाएगा कि जिस आदमी की जांच की गई है वह दरअसल कहां मौजूद था। टैबलेट में उसकी तस्वीर होगी और उसका सारा डेटा एक सर्वर में होगा जो दुनिया में कहीं भी और कभी भी इस्तेमाल किया जा सकेगा। इसका मतलब ये है कि अगर सरकारी एजेंसियां इसका इस्तेमाल करने लगें तो जन-स्वास्थ्य से जुड़े प्रामाणिक आंकड़े जुटाए जा सकते हैं।
ब्लड शुगर लेवल जांचना चुटकियों का काम
भारत के 6.10 करोड़ डायबिटीज मरीजों में से ज़्यादातर को बार-बार अपना ब्लड शुगर लेवल जांचना पड़ता है। इन्हीं लोगों की जरुरतों को पूरा करने के लिए भारतीय वैज्ञानिक एक सस्ते सुपरफास्ट डायबीटीज टेस्टिंग डिवाइस के साथ सामने आए हैं। बीआईटीएस पिलानी के वैज्ञानिकों द्वारा बनाई गई यह डिवाइस इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के आखिरी टेस्ट को भी पास कर चुकी है। इस मूल्यांकन का निरीक्षण आईसीएमआर के मुख्य निदेशक समेत एक्सपर्ट्स के पैनल ने मिलकर किया। यह देसी ग्लूकोमीटर दिसंबर तक तैयार हो जाएगा और फिर इसे मार्केट में लाने से पहले महीने भर तक अगल-अगल लैबों में टेस्ट किया जाएगा। स्वास्थ्य मंत्रालय लंबे समय से 5 रुपए में डायबीटिक टेस्टिंग चिप तैयार करने का वादा करने में लगा है। लेकिन यह ग्लूकोमीटर उससे भी सस्ता है। टीम इसकी टेक्नॉलजी पर लाइसेंस के लिए भी आवेदन कर रही है।
डायग्नॉस्टिक उपकरण के मुख्य डिवेलपर सुमन कपूर ने बताया कि टेस्ट करने और उसका रिजल्ट आने में 10 सेकेंड से भी कम समय लगेगा। हालांकि उंगली पर सूई चुभाने से ब्लड सैंपल लेने तक की पूरी विधि एक मिनट तक का समय ले सकती है। बीआईटीएस पिलानी में बायलॉजिकल साइंसिस के प्रोफेसर सुमन कपूर ने बताया, 'आखिरी जांच 6 अगस्त को की गई थी और हमें इस उपकरण के प्रारूप के बनाने के लिए हरी झंडी दे दी गई थी। उन्होंने कहा कि यह दिसंबर तक तैयार हो जाएगा। जैसे ही यह पूरा हो जाएगा, आईसीएमआर टेक्नॉलजी पर हामी भरने के लिए इसके अगल-अगल लैबों में टेस्ट करवाएगा। सब पूरा होने के बाद या तो हम खुद ही मशीन को आगे पहुंचाएंगे या फिर टेक्नॉलजी को किसी तीसरी पार्टी को ट्रांस्फर कर देंगे जो इसे लोगों के इस्तेमाल के लिए और मार्केट में लाने के लिए काम करेगी।'
डायग्नॉस्टिक उपकरण के मुख्य डिवेलपर सुमन कपूर ने बताया कि टेस्ट करने और उसका रिजल्ट आने में 10 सेकेंड से भी कम समय लगेगा। हालांकि उंगली पर सूई चुभाने से ब्लड सैंपल लेने तक की पूरी विधि एक मिनट तक का समय ले सकती है। बीआईटीएस पिलानी में बायलॉजिकल साइंसिस के प्रोफेसर सुमन कपूर ने बताया, 'आखिरी जांच 6 अगस्त को की गई थी और हमें इस उपकरण के प्रारूप के बनाने के लिए हरी झंडी दे दी गई थी। उन्होंने कहा कि यह दिसंबर तक तैयार हो जाएगा। जैसे ही यह पूरा हो जाएगा, आईसीएमआर टेक्नॉलजी पर हामी भरने के लिए इसके अगल-अगल लैबों में टेस्ट करवाएगा। सब पूरा होने के बाद या तो हम खुद ही मशीन को आगे पहुंचाएंगे या फिर टेक्नॉलजी को किसी तीसरी पार्टी को ट्रांस्फर कर देंगे जो इसे लोगों के इस्तेमाल के लिए और मार्केट में लाने के लिए काम करेगी।'
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